सीधी-सच्ची राह दिखानेवाले
Author Name: डॉ. सत्यपाल

सीधी-सच्ची राह दिखानेवाले

‘‘जिस समय हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) पैदा हुए, सारे अरब में मूर्तिपूजा ज़ोरों पर थी। हर और शिर्क (बहुदेव-पूजा) का दौर-दौरा था।

ईश्वर का विश्वास लुप्त हो रहा था। अत्याचार, दमन और बलात-हिंसा के समय तो अवश्य ईश्वर को पूज लिया जाता था, लेकिन उसकी नित्य और वास्तविक उपासना से लोग कोसो दूर थे। कुसंस्कारों और धार्मिक पाखण्डों का ज़ोर था, लेकिन ईश्वरीय आज्ञापालन का नाम न था।

ऐसे समय में आपने इस ज्ञान से ईश्वर के एकत्व की घोषणा की कि उसकी गूंज से अरब में एक नई दुनिया आबाद हो गई। हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) को लोगों ने तरह-तरह के कष्ट दिए, क्योंकि आप अद्वितीय ईश्वर का सन्देश सुनाते थे। आपको लोगों ने बहुत परेशान किया, क्योंकि आप लोगो को एक पूज्य की ओर आकर्षित करते थे। लेकिन ऐसे महान और तेजस्वी व्यक्ति इन कठिनाईयों से कब भयभीत होते हैं, जो अपने आपको ईश्वर की गोद मे पाते हैं। वे दुनिया वालों को कब ध्यान में लाते हैं, दुनिया से वे कब डरते हैं, जिनके सर पर दुनिया के मालिक का हाथ है? दुनिया उन्हे खरीद नहीं सकती, न वे अपमान से घबराते हैं, न प्रशंसा से प्रभावित होते हैं। उनकी दृष्टि में इन चीज़ों का कोई मूल्य नहीं होता।

साधारण लोग यह ख्याल करते हैं कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) एक विशेष सम्प्रदाय, एक विशेष जाति या किसी विशेष देश के पथ-प्रदर्शक हैं। (हालाकि सत्य यह है कि आप सम्पूर्ण जगत की मानव-जाति के लिए पथ-प्रदर्शक बनाकर भेजे गए हैं।) और यही कारण है कि विश्व भर में आज करोड़ों मुसलमान दिन में कई बार ईश्वर के इस पवित्र सन्देशदाता का नाम श्रद्धा और प्रेम से लेते हैं, लेकिन उनसे कहीं बढ़कर वे लोग हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के प्रशंसक हैं जो यद्यपि मेरे समान उनकी घोषणा में अपनी धीमी आवाज शामिल करते हैं और जो दिन-रात हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के इस कारनामें को याद करते हैं कि आपने भूली-भटकी दुनिया को नए सिरे से वास्तविक सत्यमार्ग दिखाया और सत्य निष्ठा का पाठ पढ़ाया।

हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) यदि अपने जीवन में और कुछ न भी कर पाते तो केवल शिर्क (बहुदेववाद) को दूर करना और एकेश्वरवाद की स्थापना ही एक ऐसा कारनामा है कि दुनिया मे उन्हें चिरस्थाई जीवन का अधिकार प्राप्त होता। लेकिन उन्होंने संसार के निवासियों के लिए वर्तमान और भविष्य की चेष्टा और प्रगति करने के लिए भी पथप्रदर्शक दीप प्रज्वलित किया है।

हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) का आत्म-त्याग, उनका आत्म-संयम और उनका आत्म-विश्वास हम सबके लिए मार्ग-दर्शन का काम देते हैं। हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने संसार में समता के सिद्धान्त को जन्म देकर उसे कार्यान्वित करके दिखा दिया। आपने बताया कि ईश्वर के निकट सारे मनुष्यों का दर्जा एक है। उसके दरबार में केवल धन और बुद्धि  को प्रधानता नही दी जाती। निर्घन हो या धनी, राजा हो या प्रजा, जिसने ईश्वरीय आज्ञापालन को अपना जीवन-लक्ष्य बना लिया उसने सर्वोच्च पद प्राप्त कर लिया। ईश-उपासना के द्वार सबके लिए खुले हैं, ऊंच-नीच का भेद अनुचित है, यही नही, अन्य सांसारिक मामलों में भी हज़रत ने परस्पर समानतापूर्ण व्यवहार का आदेश दिया हैं।’’