मेरी ऑखें खुल गर्इ: बाबू-मुकुट - धारी प्रसाद (बी0ए0एल0एल0बी0) गया के प्रमुख...
Author Name: इमामुद्दीन रामनगरी: मधुर सन्देश संगम

बाबू-मुकुट - धारी प्रसाद (बी0ए0एल0एल0बी0) गया के प्रमुख राष्ट्रीय नेता है।, जो स्वाधीनता आन्दोलन में अनेक बार जेल-यात्रा कर चुके हैं और 12 वर्ष तक नगर पािका के अध्यक्ष रह चुके हैं। हजरत मुहम्मद(सल्ल0) के जन्म दिवस की एक सभा के सभापति पद से भाषण करते हुए आपने फरमाया-
        आप लोगों को यह मालूम हो याा न हों, लेकिन सत्य यह हैं कि इस्लाम और मुहम्मद साहब के सम्बन्ध में मेरे विचार पहले उतने अच्छे नही थे जैसा कि आप आज पाते हैं। मेरा दिल उनकी ओर से द्वेष से भंग हुआ था और मुझे मुहम्मद साहब और उनके इस्लाम मे कोर्इ गुण दिखार्इ नही देता था। लकिन जब असयोग आन्दोलन मे जेल गया और वही आपकी जीवनी का अध्ययन किया तो मेरी ऑखें खुल गर्इ और मुझे मुहम्मद साहब के अपार गुणों का कायल हो जाना पड़ा और इसी कारण आज मैने श्ह उच्च पद ग्रहण कर लिया हैं।

अरब देश के इतिहास से स्पष्ट हैं कि मुहम्मद साहब के धर्म-प्रचार से पहले अरब नितान्त मूर्खता, बर्बरता, पथ-भ्रष्टता, मद्यपान और तरह-तरह के कुकर्मो में लिप्त था। लेकिन मुहम्मद साहब की शिक्षा का यह प्रभाव हुआ कि केवल 23 वर्ष के अल्प समय में इस मूर्ख और बर्बर देश की काया पलट गर्इ। आपकी शिक्षाएॅ अगणित हैं। किन्तु उनमें जो विशेष रूप् से मुझे अत्यन्त प्रिय हैं और जो हर आदमी के लिए लाभकारी और व्यवहार-योग्य हैं, बयान करता हूॅ-

मैं सबसे पहले समता को लेता हूॅ। स्वामी हो य दास, धनी हो या निर्धन, गोरा हो या काला इस्लाम ने हर मुसलमान को बराबर का अधिकार दिया हैं। मुहम्मद (सल्ल0) की शिक्षा में पारिवारिक उॅच-नीच के लिए कोर्इ जगह नही हैं, बल्कि नाम और प्रतिष्ठा की कसौटी कर्म और केवल कर्म हैं।

अब विरासत (मृतक-सम्पत्ति) और जकात को लीजिए। मेरी राय में मुहम्मद साहब ने इस विषय के प्रति जो आदेश दिए हैं, उनसे साफ प्रकट हैं कि इस्लाम पॅूजीवाद का विरोधी और धन विभाजन का समर्थक हैं। विरासत-नियम का अर्थ इसके नही हो सकता कि एक आदमी का धन कुछ आदमियों में बंट जाए और उस परिवार का हर प्राणी निर्धनता से सुरक्षित रह सके और साथ ही कोर्इ अकेला धन के घमण्ड से दूसरे आदमियों को अपने सामने हीन न समझें।

जकात (ेकेवल मुसलमानों से लिया जाने वाला धार्मिक कर) को मुहम्मद साहब की शिक्षा में जो प्रधानता प्राप्त हैं, वह दूसरे धर्मो में मौजूद। सम्पत्ति-विभाजन से एक परिवार के लोगों की आर्थिक कठिनाइयॉ दूर हो सकती थी। लेकिन जकात ने पूॅजीवाद के विरोध के साथ एक दशाहीन और निर्धन मुसलमान को निर्धनता के गर्त से निकाला और संसार में मनुष्यों का-सा जीवन बिताने का अवसर प्रदान किया। जैसे मुहम्मद साहब की शिक्षाएॅ महान थीं वैसे ही आप (सल्ल0) का आचरण भी रअति उच्च-कोटि का था। इसका एक छोटा-सा उदाहरण यह हैं कि मुहम्मद साहब की एक सुपुत्री को, जबकि वे गर्भवती थीं, इस्लाम के एक विरोधी न भाले से जख्मी कर दिया और उसके  कारण उनका गर्भपात हो गया और इस दुख से वे जीपित न रह सकीं । किन्तु फिर जब वही विरोधी किसी अवसर पर अपराधी के रूप् में मुहम्मद साबह के सम्मुख लाया गया तो आपने अपनी असीम दयालुता, धैर्य और क्षमा-भाव से काम लेकर ऐसे अपराधी को कोर्इ दण्ड दिए बिना छोड़ दिया।
सज्जनों!कहा जाता हैं कि ‘इस्लाम तलवार के बल में फैला’।
आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि मेरा भी यही विचार था। लेकिन वह कौन-सी तलवार थी? क्या वह लोहे की तलवार थीं? नहीं, वह मुहम्मद साहब की यह अमूल्य सच्चरित्रता, क्षमा-भाव, शुद्ध आचार-व्यवहार, उनके महान् गुण और उनकी कियामत तक न मिटने वाली आदर्श-शिक्षाओं की चमकती-दमकती तलवार थी, जिसने गर्दने काटने की जगह दिलों को एक धागे में जोड़ दिया। इस्लाम की लोकप्रियता और प्रसिद्धि के यही कारण है, अन्यथा कोर्इ चीज जो बलपूर्वक और अत्याचार के आधार पर कायम की जाती हैं स्थार्इ और फलदायक नहीं होती। मुहम्मद साहब की अति उत्तम शिक्षा और सदाचार ही के ये चमत्कार हैं कि इस्लाम अब तक कायम हैं और मुझे यह स्वीकार करने में कुछ भी संकोच नही हैं कि मुहम्मद साहब का धर्म ही अपनी शिक्षाओं के आधार पर आज संसार में सबसे अधिक लोकप्रियता धर्म हैं। (जगत महर्षि पृष्ठ 62-68)