रसूल इन्सान ही होते हैं

रसूल इन्सान ही होते हैं

इन्सानों के अन्दर सच्चाई, शिष्टाचार और लज्जा आदि गुण पैदा करने और उनकी शिक्षा देने के लिए प्यारे नबी (सल्ल0) को भेजा गया| उन्होने बड़ी ही सादगी से ये महान शिक्षाएं, ज्ञान और विवेक से भरपूर शिक्षाएं इन्सानों को दीं।

फलां ईश्वर के अवतार हैं, फलां ईश्वर का अंश हैं, फलां ईश्वर के पुत्र हैं| साधारणत: इन दावों के साथ बहुत से धर्मों का अविर्भाव हुआ और उनको दुनिया ने माना भी और उनकी पैरवी करने की कोशिश की। लेकिन इस्लाम धर्म में हम देखते हैं कि मुहम्मद (सल्ल0) को न ख़ुदा कहा जाता है, न ख़ुदा का बेटा और न ख़ुदा का अवतार।

प्यारे नबी (सल्ल0) सीधे-साधे मनुष्य नज़र आते हैं, लेकिन एक पवित्राचारी मनुष्य, एक महान चरित्र के अधिकारी मनुष्य| क़ुरआन एलान करता है।

‘‘हे नबी, कह दो कि मैं तो बस एक इन्सान हूँ तुम्ही जैसा। मेरी तरफ वहय की जाती है कि तुम्हारा ख़ुदा बस एक ही ख़ुदा है।’’ (अल-कहफ:110)

क़ुरआन में अनेको बार नबी (सल्ल0) की ज़ुबानी यह ऐलान कराया गया है कि वे कहें कि वे इन्सान हैं। पवित्राचारी इन्सान।

• में किसी चमत्कार का प्रदर्शन नहीं करूँगा।
• मेरे पास आसमानों के ख़ज़ाने नहीं हैं।
• में परोक्ष का ज्ञान नहीं रखता।
• में इन्सान हूँ तुम्ही जैसा इन्सान।

इन घोषणाओं के साथ अगर किसी ने किसी दीन को क़ायम किया है तो वह प्यारे नबी (सल्ल0) ही हैं।

क़ुरआन स्पष्ट शब्दों में कहता है कि:

‘‘तुम मुर्दों को नहीं सुना सकते, न उन बहरों तक अपनी आवाज़ पहुंचा सकते हो जो पीठ फ़ेरकर भागे जा रहे हों और न अन्धों को रास्ता बताकर भटकने से बचा सकते हो। तुम तो अपनी बात उन्ही लोगों को सुना सकते हो जो हमारी आयतों पर ईमान लाते हैं और फ़िर फ़रमाबरदार बन जाते हैं।’’ (अन-नमल:80-81)

अत: यह बात स्पष्ट हो जाती है कि प्यारे नबी (सल्ल0) ने किसी चमत्कार को प्रदर्शित करने की कोशिश नहीं की और न ख़ुदाई में शरीक होने का दावा किया। सीधी राह दिखाने के लिए भेजे गए वे एक इन्सान ही थे।

बात सिर्फ़ इतनी ही नहीं। क़ुरआन कहता है कि इस सत्य मार्ग से अगर नबी (सल्ल0) तनिक भी हटे, तो कोई ताक़त उन्हें ख़ुदा की पकड़ से बचा न सकेगी।

‘‘और अगर तुमने इस इल्म के बाद जो तुम्हारे पास आ चुका है, उन (अधर्मियों) की इच्छाओं का पालन किया तो अवश्य ही तुम्हारी गणना ज़ालिमों में होगी।’’ (अल-बकरा:145)

क़ुरआन फ़िर कहता है:

‘‘अगर इस इल्म के बाद जो तुम्हारे पास आ चुका है तुमने उन (अधर्मियों) की इच्छाओं की पैरवी की, तो अल्लाह की पकड़ से बचाने वाला कोई दोस्त और मददगार तुम्हारे लिए नहीं है।’’ (अल-बकरा:120)

जब हम इन आयतों को पढ़ते हैं तो दिल कांप उठता है। मानवता के लिए जिसे बेहतरीन आदर्श कहा गया, क्या ख़ुदा को छोड़कर अपनी इच्छाओं की पैरवी कर सकता है कि वह सज़ा का भागीदार हो? नहीं, हरगिज़ ऐसा नहीं हो सकता। फ़िर भी क़ुरआन स्पष्ट शब्दों में सावधान करता है कि नबी (सल्ल0) से भी अगर ग़लती हो जाय तो उनको अल्लाह की पकड़ से बचाने वाला कोई दोस्त और मददगार न होगा।

क्या किसी धार्मिक पुस्तक में उसके लाने वाले को इतनी खुली और स्पष्ट चेतावनी दी गई है? में कहूँगा कि बिल्कुल नहीं।

"मैं एक इन्सान हूँ तुम्ही जैसा। में भी कोताही करूं तो अल्लाह के यहाँ पकड़ा जाउंगा।" इस दावे के साथ किसी धर्म को प्रस्तुत करने वाला अगर कोई है तो वह नबी (सल्ल0) हैं। यदि कोई धर्म ऐसा पैग़म्बर दे सका है तो वह सिर्फ इस्लाम धर्म है।

फिर इसके साथ एक आश्चर्यजनक बात और भी है, जो हमें आम धर्मों के इतिहास में कहीं नहीं मिलती और वह यह कि प्यारे नबी (सल्ल.) को उनके ज़माने में भी इंसान ही समझा गया और देहांत के बाद भी आज तक इन्सान ही समझा जा रहा है और हमेशा इन्सान ही समझा जाएगा।

कितने ही धार्मिक गुरू इन्सान के रूप में पैदा हुए, ज़िन्दगी में इन्सान बनकर रहे। उन्होंने समाज मे सुधार और भलाई के कार्य किए और फ़िर उनका देहांत हो गया। लेकिन उनकी आंखें बन्द होते ही उन्हें ख़ुदा का दर्जा दे दिया गया।

मिसाल के तौर पर गौतम बुद्ध को लीजिए। वे पैदा तो इंसान ही हुए थे, हाँ यह ज़रूर है कि वे भले कार्य करते थे और भलाई का प्रचार करते थे। लेकिन जैसे ही उनका देहांत हुआ, उन्हें ख़ुदा बना लिया गया। लेकिन इस्लाम में नबी (सल्ल0) को कभी ख़ुदा का दर्जा नहीं दिया गया। वे बस इन्सान हैं, चरित्र से सुसज्जित इन्सान और पैग़म्बर होने की हैसियत से संपूर्ण मानव-जाति के लिए बेहतरीन नमूना।

इसी हद तक आप (सल्ल0) की प्रशंसा पिछले चौदह सौ सालों से की जा रही है। ख़ुदा का दर्जा आप (सल्ल0) को कभी नहीं दिया गया।