पाकी और सफा़र्इ
Author Name: अब्दुल्लाह आडीयार

पाकी और सफा़र्इ

अनभिज्ञ लोगों के अन्दर इस्लाम और मुसलमानों के बारे में बहुत सी गलतफहमियां पार्इ जाती हैं। उनकी एक गलतफहमी यह भी हैं कि मुसलमानों में पाकी और सफार्इ का कोर्इ महत्व नही हैं। हम ऐसे सभी भाइयों से कहेंगे कि सर्वाधिक पाकी और सफार्इ की शिक्षा देने वाला अगर कोर्इ धर्म हैं तो वह केवल इस्लाम है । प्यारे नबी स0 के तरीके के अनुसार अगर बाहय और अन्तर की पाकी और सफार्इ अपना जी जाए तो सम्पूर्ण जगत स्वच्छता का नमूना बन जाए।
   
इस्लाम में हर रोज पांच समय की नमाज फर्ज की गर्इ हैं और नमाज स्वच्छता और सफार्इ के बिना अदा ही नही होती। स्वच्छता और सफार्इ को इस्लामी परिभाषा में ‘ तहारत कहते हैं।

तहारत की तीन किस्मे हैं-

1-जिस्म की पाकी,
2-कपड़ो की पाकी और
3-जगह की पाकी।

पेशाब-पाखाने के बाद जिस्म को अत्यन्त स्वच्छ रखने की शिक्षा यह धर्म देता हैं। पेशाब के बाद पाकी के लिए ढेले और पानी के इस्तेमाल पर जोर देता हैं।

निम्नलिखित जगहों पर पाखाना-पेशाब करने को मना करता हैं: रास्ता, तालाब और नदी के घाट, पेड़ की छाया, र्इदगाह, मस्जिद, कब्रिस्तान और सार्वजनिक स्थल आदि।

इस सम्बन्ध में खड़े होकर पेशाब करने, पानी में पेशाब आदि करने या सवारी पर से शौच आदि करने से भी मना किया गया हैं। यह रोक विशेषकर पाकी और स्वच्छता को सामने रखते हुए ही लगार्इ गर्इ हैं। इस्लाम मे पाकी और स्वच्छता का कितना अधिक ख्याल रखा गया हैं इसका अनुमान आप इस बात से भी कर सकते हैं कि इस्लाम ने आदेश दिया हैं कि सुअर और कुत्ता आदि अपवित्र जानवरो का लुआब आदि अगर किसी बर्तन से लग जाए तो उसे अच्छी तरह धो कर पाक करना चाहिए।

इसी तरह अगर कपड़े या बदन से खून, पीप और गन्दगी वगैरह लग जाए तो उसे धोकर पाक करना चाहिए। इसी तरह दूध-पीता बच्चा भी पेशाब कर दे तो पानी डालकर बदन और कपड़े को साफ करना जरूरी है।

नमाज कीशर्तो में यह बात भी शामिल की गर्इ कि नमाज अदा करने की जगह, मुसल्ला, नमाज पढ़ने वाले के कपड़े और उस का जिस्म भी पाक हो। नमाजी के लिए जरूरी हैं कि नमाज से पहले वह वुजू कर ले और अगर नहाने की जरूरत हो तो नहाना भी उस के लिए जरूरी है।

नहाने में यह जरूरी हैं कि आदमी कुल्ली और गरारा भी करेंऔर नाक में पानी डालकर उसे भी अच्छी तरह साफ करे और फिर पूरे शरीर पर पानी डालकर नहाए।

वूजू मे भी कुल्ली-करते और नाक मे पानी डालकर साफ करते है। मुॅह और हाथ-पैर धोते हैं और सब काम तीन-तीन बार किया जाता हैं। हाथ भिगो कर सिर, गर्दन और कानों पर फेरते हैं। इस सम्बन्ध में दातून की भी बड़ी ताकीद की गर्इ हैं और उसका बड़ा फायदा बताया गया हैं। हर रोज नमाज के लिए पॉच बार वुजू करना पड़ता हैं अब आप स्वयं समझ सकते हैं कि इस्लाम में सफार्इ का कितना ख्याल रखा गया हैं। प्यारे नबी स0 स्वंय स्वच्छता का बड़ा ख्याल रखते थें। दांत साफ करने के लिए आपकी दातून सदैव आप के तकिए के नीचे होती थी। हर जगह थूकने को आप पसन्द नही करते थें। अगर कोर्इ गलत जगह थूक देता तो आप आगे बढ़कर स्वयं उसको साफ कर देते थे। आप स0 अपने रहने की जगह को दर्पण की तरह साफ रखते थे। आप स0 के वस्त्र सादा होते थें मगर पाक-साफं।

‘‘पाकी और स्वच्छता र्इमान का अंश हैं-यह नबी स0 का कथन हैं।