गौ-वध का प्रश्न
Author Name: इस्लाम एक स्वयं सिद्ध र्इश्वरीय जीवन व्यवस्था:राजेन्द्र नारायण लाल

प्रश्न किया जाता है कि इस्लाम सूअर के मांस पर तो प्रतिबन्ध लगाता हैं किन्तु गाय के मांस पर नही। क्या यह उचित हैं? यह प्रश्न सर्वथा बुद्धि-विरूद्ध हैं।
सामान्य मनुष्य भी सूअर और गाय के भेद को समझता हैं। सूअर कितना घृणित पशु हैं? गाय तो हिन्दू-मुसलमान सब अपने घरो मे पालते हैं, लेकिन सूअर कितनी गन्दगी में पलता हैं कैसे नही मालूम? सूअर के मांस पर इस्लाम ने सर्वथा उचित प्रतिबन्ध लगाया है। रहा गौ मांस का प्रश्न तो गौ मांस को अवश्यक इस्लाम ने विहित ठहराया हैं किन्तु अनिवार्य नही। इस्लाम के सभी नियम बुद्धि, ज्ञान और तर्क पर आधारित हैं केवल धार्मिक भावना पर नही। वह एक शुद्ध एकेश्वरवादी धर्म है। वह गाय को पूज्य नही मानता।

जहॉ तक हिन्दू-मत का प्रश्न हैं सिन्धु घाटी की सभ्यता वाले हिन्दुओं ने गाय को धार्मिक मान्यता नही दी थी। आर्यो ने ‘जो कृषि सभ्यता के जनक थे, गाय को आर्थिक दृष्टि से बध्य माना था किन्तु विशेष उत्सवों पर आर्य बैल के मांस का प्रयोग करते थे। कालान्तर में यज्ञो में अत्यधिक, जीव हिंसा होती थी। गौ-मेघयज्ञ तक हो जाता था। बौद्ध अहिंसा इसी अत्यधिक हिंसा की प्रतिक्रिया स्वरूप प्रकट हुर्इ। किन्तु वह भी व्यवहारिक सिद्ध नही हुर्इ। प्राय: अधिक बौद्ध मांसाहारी हैं। भैसो और बकरों का बलिदान तो अब तक देवी-देवताओं पर हो रहा हैं।

संसार की सभी जातियां चाहे वे सभ्य हो अथवा असभ्य तथा संसार के सभी धर्मो के अनुयायी, इनमें मांसाहारी मौजूद हैं। स्वंय भारत में छोटे से वर्ग को छोड़कर सारी हिन्दू जाति मांस-मछली खा रही हैं। यह कैसा तमाशा या अन्धेर हैं कि देवी-देवताओं पर भैंसे और बकरों की बलि करते जाना जाना और मांस-मछली खाते जाना और इस्लाम पर जीव हिंसा का आक्षेप करते जाना।.... इस्लाम किसी एक देश या एक जाति का धर्म नही हैं, सर्व विश्व का र्इश्वरीय धर्म हैं। संसार मे अनेक देश हैं जिनके निवासियों की मुख्य जीविका मांस या मछली या दोनो हैं फिर सार्वभौम धर्म इस्लाम जीवन हिंसा को प्रतिबन्धित कैसे ठहरा देता?