‘‘ अपने-अपने युग में मुहम्मद (सल्ल0) र्इसा और बुद्ध जैसे महात्माओं के साथ उसी प्रकार का घृणापूर्ण और तिरस्कारयुक्त व्यवहार किया गया, जो अघर्मियों (यानी झूठे घर्म के उपासकों) की ओर से सच्चे धर्म के प्रवर्तकों के लिए खास हैं और खास हैं और हजरत मुहम्मद (सल्ल0) को इसी प्रकार के घर का एक महान अग्रण्य नेता समझकर ही मैं इस बात पर मजबूर हुआ हूॅ कि उनका सम्मान करूॅ ।
यह आप ही काम था कि अद्वितीय साहस और दृढ़ता के साथ, जिसके कारण आप कर्इ बार मौंत के मुहॅ तक पहॅुच गए, आपने उस काल के प्रचलित धर्म-सिद्वान्तों को तोड़ा और एक ऐसे धर्म की नीवं रखी, जिसने उस काल की सभ्यता में भी महत्वपूर्ण क्रान्ति उत्पन्न कर दी और आगे चलकर इस दुनिया के विभिन्न भागों में बसने वाले करोड़ो मनुष्यों के लिए मार्ग प्रदीप का काम दिया।
इस सच्चार्इ से किसी को इनकार नहीं हो सकता कि इस्लाम के प्रवर्तक का व्यक्तित्व जितना पवित्र और उत्तम था, उसमें उतनी ही आकर्षण-शक्ति भी मौजूद थी और आप ऐसे दिल और ऐसे दिमाग के मालिक थें, जिसका उदाहरण आज तक इस दुनिया में बहुत कम पाया जाता हैं। इस पवित्रात्मा पैगम्बर ने सदियों पहले अपने अनुयायियों के लिए जो जीवन-व्यवस्था बनार्इ थी, उसमें दो बाते विशेष रूप् से हर व्यक्ति का ध्यान अपनी ओर खींच लेजी हैं। यह बात कितनी आश्चर्यजनक हैं कि लोकतन्त्र के इस युग में भी हम सामाजिक और बौद्धिक समता के उस उच्च स्तर पर नहीं पहुॅच सके हैं, जिसकी कल्पना इस महामहिम पैगम्बर के मस्तिष्क में सदियों पहले आ चुकी आ चुकी थी और जिस पर दुनिया के मुसनमानों ने एक कौम की हैसियत से अपने दैनिक जीवन में आश्चर्यजनक निष्ठा के साथ अमल किया हैं।
राजनीतिक लोकतन्त्र मे भी बहुत कुछ विशेषताएॅ हैं और यह वास्तविकता हैं कि हर ऐसा राजनीतिक विधान जो जनता को उस राज्य के स्थापित करने में पूर्ण स्वतन्त्रता न दें, जिसके अन्तर्गत वह जीवन व्यतीत करना चाहती हैं, निस्सन्देह अन्यायपूर्ण और निरंकुश हैं। लेकिन केवल राजनीतिक लोकतन्त्र से काम नही चला करता और लोकतन्त्रात्मक जीवन-प्रणाली की इससे पूर्ति नही होती। लोकतन्त्र का वास्तविक रहस्य जिस चीज में निहित हैं, वह तो यह हैं कि मनुष्य की दृष्टि मे दूसरे मनुष्य की कितनी प्रतिष्ठाा हैं और एक समाज दूसरे समाज के साथ कैसा व्यवहार कर रहा हैं।