अंतिम बुद्ध - मैत्रय
Author Name: डा0 वेदप्रकाश उपाध्याय

अंतिम बुद्ध - मैत्रय

'ऋषि' को बोद्ध धर्म की भाषा में 'बुद्ध' कहा जाता है। अन्तिम बुद्ध के विषय में भविष्यवाणी का स्वरूप प्रस्तुत है, जिसे गौतम बुद्ध ने अपने मृत्यु काल के समय अपने प्रिय शिष्य नन्दा से बताया था। '‘नन्दा! इस संसार में मैं न तो प्रथम बुद्ध हूं और न तो अन्तिम बुद्ध हूं। इस जगत में सत्य तथा परोपकार की शिक्षा देने के लिए अपने समय पर एक और ‘बुद्ध’ आएगा। वह पवित्र अन्त:करण वाला होगा। उसका हृदय शुद्ध होगा। ज्ञान और बृद्धि से संपन्न तथा समस्त लोगों का नायक होगा। जिस प्रकार मैंने जगत को अनश्वर सत्य की शिक्षा प्रदान की है, उसी प्रकार वह भी जगत को सत्य की शिक्षा देगा। जगत को वह ऐसा जीवन मार्ग दिखाएगा, जो शुद्ध (अमिश्रित) तथा पूर्ण भी होगा। नन्दा! उसका नाम 'मैत्रेय' होगा।’’

'बुद्ध' का अर्थ 'बुद्धि से युक्त' होता है। बुद्ध मनुष्य ही होते हैं देवता आदि नहीं।

बुद्ध की विशेषताएं

बुद्ध ऐश्वर्यवान एवं धनवान होता है

बुद्ध सन्तान से युक्त होता है।

बुद्ध स्त्री तथा शासन से युक्त होता है।

बुद्ध अपनी पूर्ण आयु तक जीवित रहता है।

बुद्ध पद को प्राप्त व्यक्ति का यह सिद्धान्त होता है, कि अपनी सिद्धि के लिए अपना कार्य स्वंय करना चाहिए। बुद्ध केवल धर्म प्रचारक होते हैं। 'बुद्ध' को 'तथागत' भी कहा जाता है। जिस समय बुद्ध एकान्त में रहता है, उस समय ईश्वर उसके साथियों के रूप में देवताओं और राक्षसों को भेजता है। प्रत्येक बुद्ध अपने पूर्ववर्ती बुद्ध का स्मरण कराता है और अपने अनुयायियों को 'मार' से बचने की चेतावनी देता है। 'मार' का अर्थ बुराई एवं विनाश को फैलाने वाला होता है। जिसे उर्दू भाषा में शैतान तथा अंग्रेजी में डेविल कहा जा सकता है। बुद्ध के अनुयायी पक्के अनुयायी होते हैं, जिन्हे कोई भी उनके मार्ग से विचलित नहीं कर सकता। संसार में एक समय में केवल एक ही बुद्ध रहता है।

बुद्ध के लिए सबसे आवश्यक इस बात का होना है कि संसार का कोई भी व्यक्ति उसका गुरू न हो।

प्रत्येक बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष का होना आवश्यक है। हर एक बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष के रूप में अलग-अलग वृक्ष निश्चित रहे हैं।

बुद्ध मैत्रेय की विशेषताएं

मैत्रेय का अर्थ होता है-दया से युक्त

बुद्ध होने के कारण अन्तिम बुद्ध मैत्रेय में भी बुद्ध की सभी विशेषताएं पाई जाएंगी।

मैत्रेय बोधिवृक्ष के नीचे सभा का आयोजन करेगा।

बोधिवृक्ष के दो प्रकार हैं- (1) सांसारिक वृक्ष, (2)स्वर्गीय वृक्ष।

बोधिवृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति होती है।

इस समय हम स्वर्गीय बोधिवृक्ष के विषय में कुछ विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं।

1. स्वर्गीय बोधिवृक्ष बहुत ही विस्तृत क्षेत्र में है।

2. ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध स्थिर दृष्टि से उस बोधिवृक्ष को देखता है।

सामान्य मनुष्यों की अपेक्षा बुद्धों के गर्दन की हड्डी अत्यधिक दृढ़ होती थी, जिससे वे गर्दन मोड़ते समय अपने पूरे शरीर को हाथी की तरह घुमा लेते थे। मैत्रेय में भी उक्त गुण का होना स्वाभाविक है।

अब हम यह सिद्ध करेंगे कि कौन ऐसा व्यक्ति है, जिस पर बुद्धों की सभी विशेषताएं पूरी उतरती हैं और जो मैत्रेय की कसौटी पर खरा उतरता है।

क़ुरआन में मोहम्मद साहब के ऐश्वर्यवान और धनवान होने के विषय में यह ईश्वरीय वाणी है कि तुम पहले निर्धन थे, हमने तुमको धनी बना दिया। मोहम्मद साहब ऋषि पद को प्राप्त करने के बहुत पहले धनी हो गए थे। मोहम्मद साहब के पास अनेक घोड़े थे। उनकी सवारी के रूप में प्रसिद्ध उंट 'अलकसवा' था, जिस पर सवार होकर मक्का से मदीना गए थे और बीस की संख्या में ऊंटनियां थीं, जिसका दूध मुहम्मद साहब और उनके बाल बच्चों के पीने के लिए पर्याप्त था, साथ ही साथ सभी अतिथियों के लिए भी पर्याप्त था ऊंटनियों का दूध ही मोहम्मद साहब व उनके बाल-बच्चों का प्रमुख आहार था। मोहम्मद साहब के पास 7 बकरियां थीं, जो दूध का साधन थीं। मोहम्मद साहब दूध की प्राप्ति के लिए भेंसें नहीं रखते थे, इसका कारण यह है कि अरब में भैंसें नहीं होती। उनके 7 खजूर के बाग़ थे जो बाद में धार्मिक कार्यों के लिए मोहम्मद साहब द्वारा दे दिए गए थे। मोहम्मद साहब के पास तीन भूमिगत सम्पत्तियां थीं, जो कई बीघे के क्षेत्र में थीं। मोहम्मद साहब के अधिकार में कई कुंए भी थे। इतना स्मरणीय है, कि अरब में कुआं बहुत बड़ी सम्पत्ति समझी जाती है, क्योंकि वहां रेगिस्तानी भू-भाग है। मोहम्मद साहब के 12 पत्नियां, 4 लड़कियां और 3 लड़के थे। बुद्ध के अन्तर्गत पत्नी और सन्तान का होना द्वितीय गुण है। मोहम्मद साहब के पूर्ववर्ती भारतीय बुद्धों में यह गुण नाममात्र को पाया जाता था, परन्तु मोहम्मद साहब के पास उसका 12 गुना गुण विद्यमान था।

मोहम्मद साहब ने शासन भी किया। अपने जीवन काल में ही उन्होंने बड़े-बड़े राजाओं को पराजित करके उन पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। अरब के सम्राट होने पर भी उनका भोज्य पदार्थ पूर्ववत था।

मोहम्मद साहब अपनी पूर्ण आयु तक जीवित रहे। अल्पायु में उनका देहावसान नहीं हुआ और न तो वे किसी के द्वारा मारे गए।

मोहम्मद साहब अपना काम स्वयं कर लेते थे। उन्होंने अपने जीवन भर धर्म का प्रचार किया। उनके धर्म-प्रचारक स्वरूप की पुष्टि अनेक इतिहासकारों ने भी की है। यद्यपि उनके विषय में यह बात तो अत्यधिक प्रसिद्ध है ही।

जिस समय मोहम्मद साहब एकान्त में रहते थे, उस समय कभी-कभी देवता और राक्षस भी उनके पास आ जाया करते थे।

मोहम्मद साहब ने भी अपने पूर्ववर्ती ऋषियों का समर्थन किया, इस बात के लिए आप पूरा क़ुरआन देख सकते हैं। उदाहरण के रूप में क़ुरआन में दूसरी सूर: में उल्लेख है कि 'ऐ आस्तिकों! (मुसलमानों) तुम कहो कि हम ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखते हैं और जो पुस्तक हम पर अवतीर्ण हुई, उस पर और जो-जो कुछ इब्राहीम, इस्माइल, इस्हाक और याकूब पर, उनकी सन्तान (के ऋषियों) पर और जो कुछ मूसा और ईसा को दी गईं, उन पर भी और जो कुछ अनेक ऋषियों को, उनके पालक (ईश्वर) की ओर से उपलब्ध हुई उन पर भी हम आस्था रखते हैं और उन ऋषियों मे किसी प्रकार का अन्तर नहीं मानते और हम उसी एक ईश्वर के मानने वाले हैं।'

मोहम्मद साहब ने अपने अनुयायियों को शैतान से बचने की चेतावनी बार-बार दी थी। क़ुरआन में शैतान से बचने के लिए यह कहा गया है कि जो शैतान को अपना मित्र बनाएगा, उसे वह भटका देगा और नारकीय कष्टों का मार्ग प्रदर्शित करेगा

मोहम्मद साहब के अनुयायी कभी भी मोहम्मद साहब के बताए हुए मार्ग से विचलित न होते हुए उनकी पक्की शिष्यता अथवा मैत्री में आबद्ध रहते हैं। मोहम्मद साहब का संग उनके अनुयायियों ने आमरण नहीं छोड़ा, भले ही उन्हे कष्टों का सामना करना पड़ा हो।

संसार में जिस समय मोहम्मद साहब बुद्ध थे, उस समय किसी भी देश में कोई अन्य बुद्ध नहीं था। मोहम्मद साहब के बुद्ध होने के समय सम्पूर्ण संसार की सामाजिक और धार्मिक स्थिति बहुत ही ख़राब थी, इस बात की पुष्टि 'कल्कि अवतार और मोहम्मद साहब' शोध पुस्तक में देख सकते हैं।

मोहम्मद का कोई भी गुरू संसार का व्यक्ति नहीं था। मोहम्मद साहब पढ़े-लिखे भी नहीं थे, इसीलिए उन्हे ‘उम्मी’ भी कहा जाता है। ईश्वर द्वारा मोहम्मद साहब के अन्त:करण में उतारी गई आयतों की संहिता क़ुरआन है। प्रत्येक बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष का होना आवश्यक है। किसी बुद्ध के लिए बोधिकृत के रूप में अश्वत्थ (पीपल), किसी के लिए न्यग्रोध (बरगद) तथा किसी बुद्ध के लिए उदुम्बर (गूलर) प्रयुक्त हुआ है। बुद्ध मैत्रेय के लिए जिस बोधिवृक्ष का होना बताया गया है, वह है-कड़ी और भारयुक्त काष्ठ वाला वृक्ष

मोहम्मद साहब के लिए बोधिवृक्ष के रूप में हुदैबिया स्थान में एक कड़ी और भारयुक्त काष्ठवाला वृक्ष था, जिसके नीचे मोहम्मद साहब ने सभा भी की थी।

'मैत्रेय' का अर्थ होता है-दया से युक्त। 16 अक्टूबर सन 1930 लीडर पृ0 7 कालम 3 में एक बौद्ध ने ‘मैत्रेय’ का अर्थ ‘दया’ किया है। मोहम्मद साहब दया से युक्त थे। इसी कारण से मुहम्मद साहब को ‘रहमतुल्लिलआलमीन’ कहा जाता है। जिसका अर्थ है-समस्त संसार के लिए दया से युक्त। बुद्धों के अन्तर्गत पाई जाने वाली सभी विशेषताएं मोहम्मद साहब मे भी विद्यमान थी।

मोहम्मद साहब ने भी स्वप्न में एक वृक्ष को देखा था, जो ईश्वर के सिंहासन के दाहिनी और विद्यमान था, जो इतने बड़े क्षेत्र में था, जिसे एक घुड़सवार लगभग 100 वर्षों में भी उसकी छाया को पार नहीं कर सकता था।

मोहम्मद साहब ने भी स्वर्ग मे वृक्ष को आंख बिना झपकाए हुए देखा था।

मैत्रेय के विषय में जो यह कहा गया है कि किसी भी तरफ मुड़ते समय वह अपने शरीर को पूरा घुमा लेगा। यही बात मुहम्मद साहब के भी विषय मे थी, कि वह बातचीत करने में किसी मित्र की ओर देखते समय अपने शरीर को पूरा घुमा लेते थे।

इस प्रकार यह सिद्ध होता है, कि बौद्ध ग्रन्थों में जिस मैत्रेय के होने की भविष्यवाणी की गई है, वह अन्तिम ऋषि ही है।