मुसलमान कौन हैं?
Author Name: लाला काशी राम चावला, अनुवादक-मुहम्मद कमरूददीन

यदि कोर्इ प्रश्न करे कि एक वाक्य मे बताया जाए कि मुसलमान किसे कहते हैं? तो इसका उत्तर यह हैं कि ‘‘ मुसलमान वह हैं जो इस्लाम का पालन करे ‘‘ और ‘’इस्लाम क्या हैं?’’ यह पहले सविस्तार बताया जा चुका हैं।
मुसलमान वह है जो पवित्र कुरआन का माननेवाला, उसके अनुसार कर्म करनेवाला हैं और र्इशदूत (सल्ल0) के आदर्श को अपने लिए मार्गदीप समझता हैं या जिस मार्ग पर आपके उत्तराधिकारी (खुलफा-ए-राशिदीन) और आपके वंशज चले, उसका अनुसरण करता हैं।
नीचे पवित्र कुरआन से भी मुसलमानों के कुछ गुण दर्शाए जा रहे हैं। जिसने अपनी इन्द्रियों को शुद्ध एवं स्वच्छ बनाया वह सफल हुआ और जिसने उनको अशुद्ध रखा, वह असफल रहा ।         - कुरआन, 91:9-10


इस से मालूम हुआ कि वही मुसलमान कहलाने के योग्य हैं जिसकी इन्द्रियो पर पाप की मैल न हो।
र्इशदूत (सल्ल0) के आदर्श जीवन से हमे क्या शिक्षा मिलती हैं। इसके बारे में भी कुरआन की गवाही पेश करना बहुत उचित होगा-

यह पैगम्बर उन (अनपढ़ जाहिलो) को शुद्ध एवं स्वच्छ बनाते हैं और उनको र्इश्वरीय पुस्तक और ज्ञान की बाते सिखाते हैं।         -कुरआन, 62:2

इस आयत में दो शब्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता हैं अर्थात शुद्ध और स्वच्छ बनाना और ज्ञान की बाते सिखाना। जो मनुष्य इन दोनो बातों को अपने जीवन मे ेंसम्मिलित कर लेता हैं, वही मुसलमान कहलाने का अधिकारी हैं।

पवित्र कुरआन में भी मुसलमानों के लिए र्इशदूत हजरत मुहम्मद (सल्ल0) के जीवन को आदर्श बताया गया हैं-

लकद् का-न लकुम फी रसूलिल्लाहि उस्वतुन हसन : - कुरआन, 33:21

अर्थात तुम्हारे लिए र्इश्वर के दूत के जीवन में एक उच्च आदर्श रखा गया हैं। र्इशदूत के सदाचरण और नैतिक पुष्पों के संग्रह का यदि संक्षेप में वर्णन किया जाए तो यूं कह सकते हैं-

आप कभी किसी को बुरा न कहते थे। बुरार्इ के बदले मे बुरार्इ न करते थे, बल्कि बुरार्इ करनेवाले को क्षमा कर देते थें। किसी को अभिशाप नही देते थे। आपने कभी किसी दासी या दास या सेवक को अपने हाथ से सजा नही दी, किसी की नम्रतापूर्वक मांग को कभी अस्वीकार नही किया। आपकी जबान में बड़ी मिठास थी, कभी बुरी बात अपनी जबान से नही निकालते थें। शान्तिप्रिय थे, अति सत्यवादी और र्इमानदार थे। बडे़ ही नम्र स्वभाव के सुव्यवहारशील और मित्रों से प्रेम करनेवाले थें। किसी का अपमान नही करते थे, सदा सत्य का समर्थन करते थें। क्रोध को सह लेते थे। अपने व्यक्तिगत मामलों में कभी क्रोधित नही होते थे। जिन व्यक्तियों को बुरा समझते थे, उनसे भी सुशीलता एवं सुवचन का व्यवहार करते थे। जोर से हंसना बुरा समझते थे, परन्तु सदा हंसमुख और खुश रहते थें।

ये सभी गुण बिना किसी अतिश्योक्ति के वर्णित किए गए हैं, बल्कि इनका प्रमाण आपके जीवन की घटनाओं से भी मिलता हैं पवित्र कुरआन के एक वाक्य से पता लगता हैं कि इस्लाम मे नैतिकता को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया हैं। सूरा अ-ब-स में आता हैं कि एक बार र्इशदूत (सल्ल0) किसी विरोधी को समझा रह थे। कि इतने मे एक मुसलमान आया, जो अन्धा था और वह र्इशदूत को अपनी ओर आकर्षित करने लगा कि कुरआन का अमुक वाक्य किस प्रकार हैं, इसका अर्थ क्या हैं? आपको यह कुसमय का प्रश्न करना और वार्तालाप के बीच हस्तक्षेप बुरा मालूम हुआ और उस अन्धे पर आप नाराज हुए। उसी अवसर पर तुरन्त यह आयत उतरी, जिसका अनुवाद निम्नलिखित है-

‘‘ उसके माथे पर बल पड़ गए और ध्यान न दिया, इस कारण कि उसके पास अन्धा आया, और तुमको क्या पता कि शायद वह संवर जाता या उपदेश ग्रहण करता।’’
                                    -कुरआन, 80:1-4
इस आयत की व्याख्या की आवश्यकता नही अर्थात र्इश्वर ने इस्लाम में नैतिकता के स्तर को इतना उंचा स्थान दिया हैं कि किसी व्यक्ति पर अकारण त्योरी चढ़ाना भी र्इश्वर को अच्छा नही लगा।

मुसलमान मे कौन-से गुण होने चाहिए, इस्लाम के माननेवालों की वास्तविक विशेषता क्या होती है,ं सुनिए-

‘ऐसे लोगो जो अर्थदान करते हैं, अच्छीआर्थिक दशा में भी और कठिनार्इ में भी और गुस्से को पी जानेवाले और लोगो को क्षमा करनेवाले होते हैं, र्इश्वर ऐसे उपकार करनेवाले को प्रिय रखता हैं । और जब वे बुरा काम कर बैठते हैं या स्वयं अपने प्रति अन्याय कर बैठते हैं, तो वे र्इश्वर का स्मरण करते हैं और अपने दोषो के लिए र्इश्वर से क्षमा मांगते हैं।’’        - कुरआन, 3:134-135

यह है र्इश्वरीय आदेश, यह हैं इस्लाम की शिक्षा, जिसके आदेशनुसार चलकर इसकी शान को बढ़ाया जा सकता हैं।

अत: हर मुसलमान का यह कर्तव्य हैं कि वह अपने जीवन को इन गुणों से परिपूर्ण करे और देखे कि वह कहॉ र्इशदूत (सल्ल0) के पद-चिन्ह पर चल रहा है । कहां तक आपके आदेशों का पालन कर रहा हैं। एक मुसलमान सच्चा मुसलमान तभी हो सकता हैं, जब वह पूरी तरह से इस्लाम के अनुसार चले, जिसका आदर्श र्इशदूत (सल्ल0) ने अपने जीवन में स्थापित किया। यदि किसी मुसलमान का आचरण इसके विपरीत है तो वह समझे कि इस्लाम का अनुयायी नहीं। र्इशदूत (सल्ल0) तो वे थे जिन पर मानवता और शिक्षा शिष्टता को पूर्ण किया गया। इस्लाम की पूर्णता का अर्थ ही यह है कि मानवता और नैतिकता को उसके उच्च स्तर तक पहुचा दिया जाएगा।


क्षमाशीलता 

इस्लामी विश्वासों के अनुसार क्षमाशीलता भी र्इश्वर के गुणों में से बहुत बड़ा गुण हैं। यदि यह न हो तो यह ब्रहम्माण्ड एक क्षण के लिए भी स्थापित न रहें। पवित्र कुरआन में र्इश्वर के जो विशेष नाम आए हैं, उनमें-अफेवु, गाफिर, गफ़्फार और गफूर भी हैं (इन सब के अर्थो में क्षमा सम्मिलित हैं)। पवित्र कुरआन मे एक स्थान पर र्इश्वर की गरिमा को प्रकट करते हुए स्पष्ट रूप से कहा गया हैं-

‘‘ और वही हैं, जो अपने बन्दो की तौबा कबूल करता हैं और बुराइयों को क्षमा करता रहता हैं।’’        -कुरआन, 42:25

दयालु र्इश्वर ने अपने पवित्र ग्रन्थ में जगह-जगह अपने भक्तों को अपनी क्षमाशीलता और दयालुता का विश्वास दिलाया हैं। एक स्थान पर लिखा हैं-

    ‘‘ और इसमें सन्देह नही कि जो तौबा करता हैं, र्इमान लाता हैं, सुकर्म करता हैं और संमार्ग पर स्थित रहता हैं, मै उसको बहुत-बहुुत क्षमा प्रदान करनेवाला हूॅ।’’
                                        कुरआन, 20:82

पवित्र कुरआन में र्इश्वर ने 85 स्थानों पर अपने आपको क्षमा प्रदान करनेवाला लिखा हैं। इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि यह गुण र्इश्वर को कितना प्रिय है और उसकी दृष्टि में उसका कितना महत्व है। इससे हम समझ सकते हैं कि उस परमेश्वर की क्षमाशीलता का सागर किस जोर-शोर से ठाठे मार रहा हैं एवं उसकी दयालुता का स्त्रोत किस जोश से प्रवाहित हो रहा हैं।

इस दुनिया में हम देखते हैं कि एक अच्छे पिता की इच्छा भी यही होती हैं और वह अपनी संतान को यही आदेश भी देता है कि वह अच्छे गुणों को अपने जीवन में साकार करें और उसके नक्शे कदम पर चले।

सांसारिक पिता से कहीं बढ़कर उस सर्वशक्तिमान अल्लाह को प्रसन्न करना आवश्यक हैं और विशेष रूप से ताकीद की गर्इ हैं कि उसके भक्त उन सभी अच्छे गुणों को ग्रहण करें जो अल्लाह को प्रिय हैं।

क्षमाशीलता के सम्बन्ध में पवित्र कुरआन में भक्तों को यह आदेश दिया गया हैं-

‘‘ यदि किसी के दोष को तुम क्षमा कर दो और टाल जाओ, तो निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमा करनेवाला और बड़ा दयावान हैं।         - कुरआन, 64:14

इस आयत से हमे र्इश्वर की प्रसन्नता और इच्छा का स्पष्ट पता चल जाता हैं। र्इश्वर कहता हैं-

‘ ऐ मनुष्यों ! तुम मुझसे क्षमा की आशा उसी समय तक कर सकते हो जब तुम स्वयं अपने दोषियों क्षमा करोगे।’’

एक और आयत में इस बात का और अधिक जोरदार शब्दों में वर्णन किया गया हैं-

‘‘ और चाहिए कि वे क्षमा कर दें। क्या तुम नही चाहते कि र्इश्वर तुम को क्षमा कर दे और र्इश्वर क्षमा करनेवाला और कृपालु हैं।
र्इश्वर ने कुरआन मे अपने प्रिय भक्तो के गुण कर्इ स्थानों पर बयान किया हैं। एक स्थान पर फरमाया हैं-
‘‘ और जब (उनको किसी पर) क्रोध आता हैं तो वे उसे क्षमा कर देते है।’’ -कुरआन, 42:37