इस्लाम और उसकी विशेषताए
Author Name: इस्लाम और उसकी विशेषताए: राजेन्द्र नारायण लाल

संक्षेप में इस्लाम की प्रधान विशेषताए निम्न हैं-
इस्लाम की सबसे प्रधान विशेषता उसका विशुद्ध एकेश्वरवाद हैं। हिन्दू धर्म के र्इश्वर-कृत वेदो का एकेश्वरवाद कालान्तर से बहुदेववाद में खोया तो नही तथापि बहुदेववाद और अवतारवाद के बाद र्इश्वर को मुख्य से गौण बना दिया गया है। इसी प्रकार र्इसार्इयों की त्रिमूर्ति (Trinity) अर्र्थात् र्इश्वर, पुत्र और आत्मा की कल्पना ने हिन्दुओं के अवतारवाद के समान र्इसार्इ धर्म में भी र्इश्वर मुख्य न रहकर गौण हो गया। इसके विपरीत इस्लाम के एकेश्वरवाद में न किसी प्रकार का परिवर्तन हुआ और न विकार उत्पन्न हुआ। इसकी नींव इतनी सुदृढ़ है। कि इसमें मिश्रण का प्रवेश असंभव हैं। इसका कारण इस्लाम का यह आधारभूत कलिमा हैं-’’मैं स्वीकार करता हू कि र्इश्वर के अतिरिक्त कोर्इ पूज्य और उपास्य नही और मुहम्मद र्इश्वर के दास और उसके दूत हैं।’’ मुहम्मद साहब को र्इश्वर ने कुरआन में अधिकतर ‘अब्द’ कहा है जिसका अर्थ आज्ञाकारी दास है, अतएव र्इश्वर का दास न र्इश्वर का अवतार हो सकता हैं और न उपास्य हो सकता हैं।

(2) इस्लाम ने मदिरा को हर प्रकार के पापों की जननी कहा है। अत: इस्लाम मे केवल नैतिकता के आधार पर मदिरापान निषेध नहीं हैं अपितु घोर दंडनीय अपराध भी हैं अर्थात कोड़े की सजा । इस्लाम में सिद्धान्तत: ताड़ी, भंग आदि सभी मादक वस्तुएॅ निषिद्ध है जबकि हिन्दू धर्म में इसकी मनाही भी है और नही भी है। विष्णु के उपासक मदिरा को वर्जित मानते है और काली के उपासक धार्मिक, शिव जैसे देवता को भंग-धतूरा का सेवनकर्ता बताया जाता हैं तथा शैव भी भंग, गॉजा आदि का सेवन करते हैं।

(3) जकात अर्थात अनिवार्य दान। यह श्रेय केवल इस्लाम को प्राप्त है कि उसके पॉच आधारभूत कृत्यों-नमाज (उपासना), रोजा (व्रत), हज (काबा की तीर्थ की यात्रा), मे एक मुख्य कृत्य जकात भी हैं। इस दान को प्राप्त करने के पात्रों मे निर्धन भी हैं और ऐसे कर्जदार भी हैं जो कर्ज अदा करने मे असमर्थ हो या इतना धन न रखते हो कि कोर्इ कारोबार कर सके। नियमित रूप से धनवानों के धन मे इस्लाम ने मूलत: धनहीनों का अधिकार निश्चित कर दिया है, अतएव जकात मे जिन लोगो का अधिकार है उनके लिए यह आवश्यक नही हैं कि वे जकात लेने के वास्ते भिक्षुक बनकर धनवानों के पास जाएॅ। यह शासन का कर्तव्य है कि वह धनवानों से जकात वसूल करे और उसके अधिकारियों को दें। धनहीनों का ऐसा आदर किसी धर्म में नही हैं।

(4) इस्लाम मे हर प्रकार का जुआ निषिद्ध है जबकि हिन्दू धर्म मे दीपावली मे जुआ खेलना धार्मिक कार्य हैं। र्इसार्इ धर्म मे भी जुआ पर कोर्इ प्रतिबन्ध नही है।


(5)सूद (ब्याज) एक ऐसा व्यवहार हैं जो धनवानों को और धनवान तथा धनहीनों को और धनहीन बना देता हैं। समाज को इस पतन से सुरक्षित रखने के लिए किसी धर्म ने सूद पर किसी प्रकार की रोक नही लगार्इ हैं। इस्लाम ही ऐसा धर्म हैं जिसने सूद को अति वर्जित ठहराया है। सूद को निषिद्ध घोषित करते हुए कुरआन में बाकी सूद को छोड़ देने की आज्ञा दी गर्इ हैं और न छोड़ने पर र्इश्वर और उसके सन्देष्टा से युद्ध की धमकी दी गर्इ हैं। (कुरआन, 2:279)

(6) इस्लाम ही को यह श्रेय भी प्राप्त है कि उसने धार्मिक रूप से रिश्वत (घूस) को निषिद्ध ठहराया हैं (कुरआन, 2:188)। हजरत मुहम्मद साहब ने रिश्वत देनेवाले और लेनेवाले दोनो पर खुदा की लानत भेजी हैं।

(7)इस्लाम ही ने सबसे प्रथम स्त्रियों को सम्पत्ति का अधिकार प्रदान किया, उसने मृतक की सम्पत्ति मे भी स्त्रियों को भाग दिया।’ हिन्दू धर्म मे विधवा स्त्री के पुनर्विवाह का नियम नही है, इतना ही नही मृत पति के शव के साथ विधवा को जीवित जलाने की प्रथा थी। जो नही जलार्इ जाती थी वह न अच्छा भोजन कर सकती थी, न अच्छा वस्त्र पहन सकती थी और न शुभ कार्यो मे भाग ले सकती थी। वह सर्वथा तिरस्कृत हो जाती थी, उसका जीवन भारत स्वरूप हो जाता था। इस्लाम में विधवा के लिए कोर्इ कठोर नियम नही हैं। पति की मृत्यु के चार महीने दस बाद वह अपना विवाह कर सकती हैं।

(8) इस्लाम ही ने अनिवार्य परिस्थिति मे स्त्रियों को पति त्याग का अधिकार प्रदान किया हैं, हिन्दू धर्म मे स्त्री को यह अधिकार नही हैं। हमारे देश में संविधान द्वारा अब स्त्रियों को अनेक अधिकार मिले हैं।

(9) यह इस्लाम ही हैं जिसने किसी स्त्री के सतीत्व पर लांछनालगाने वाले के लिए चार साक्ष्य उपस्थित करना अनिवार्य ठहराया हैं।

और यदि वह चार साक्ष्य उपस्थित न कर सके तो उसके लिए अस्सी कोड़ो की सजा नियत की है। इस संदर्भ में श्री रामचन्द्र और हजरत मुहम्मद साहब का आचरण विचारणीय हैं। मुहम्मद साहब की पत्नी सुश्री आइशा के सतीत्व पर लांछना लगार्इ गर्इ थी जो मिथ्या सिद्ध हुर्इ, श्रीमती आइशा निर्दोष सिद्ध हुर्इ। परन्तु रामचन्द्र जी ने केवल संशय के कारण श्रीमती सीता देवी का परित्याग कर दिया जबकि वे अग्नि परीक्षा द्वारा अपना सतीत्व सिद्ध कर चुकी थी। यदि पुरूष रामचन्द्र जी के इस आचार का अनुसरण करने लगें तो किनती निर्दोष स्त्रियों का जीवन नष्ट हो जाए। स्त्रियों को इस्लाम का कृतज्ञ होना चाहिए कि उसने निर्दोष स्त्रियों पर दोषा रोपण को वैधानिक अपराध ठहराया।

(10)इस्लाम ही हैं जिसने कम नापने और कम तौलने  को वैधानिक अपराध के साथ धार्मिक पाप भी ठहराया और बताया कि परलोक में भी इसकी पूछ होगी।

(11) इस्लाम ने अनाथो के सम्पत्तिहरण धार्मिक पाप ठहराया हैं।(कुरआन, 4:10, 4:127)
(12)इस्लाम कहता हैं कि यदि तुम र्इश्वर से प्रेम करते हो तो उसकी सृष्टि से प्रेम करो।
(13)इस्लाम कहता हैं कि र्इश्वर उससे प्रेम करता हैं जो उसके बन्दो के साथ अधिक से अधिक भलार्इ करता हैं।
(14)इस्लाम कहता हैं कि जो प्राणियों पर दया करता हैं, र्इश्वर उसपर दया करता हैं।
(15)दया र्इमान की निशानी हैं। जिसमें दया नही उसमें र्इमान नही।

(16)किसी का र्इमान पूर्ण नही हो सकता जब तक कि वह अपने साथी को अपने समान न समझे।

(17)इस्लाम के अनुसार इस्लामी राज्य कुफ्र (अधर्म) को सहन कर सकता हैं, परन्तु अत्याचार और अन्याय को सहन नही कर सकता।

(18)इस्लाम कहता है कि जिसका पड़ोसी उसकी बुरार्इ से सुरक्षित न हो वह र्इमान नही लाया।

(19)जो व्यक्ति किसी व्यक्ति की एक बालिश्त भूमि भी अनधिकार रूप से लेगा वह कियामत के दिन सात तह तक पृथ्वी में धंसा दिया जाएगा।
(20)इस्लाम मे जो समता और बंधुत्व है वह संसार के किसी धर्म मे ंनही हैं। हिन्दू धर्म मे हरिजन घृणित और अपमानित माने जाते हैं। इस भावना के विरूद्ध 2500 वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध ने आवाज उठार्इ और तब स ेअब तक अनेक सुधारकों ने इस भावना को बदलने का प्रयास किया।

आधुनिक काल में महात्मा गॉधी ने अथक प्रयास किया किन्तु वे भी हिन्दुओं की इस भावना को बदलने मे सफल नही हो सके। इसी प्रकार र्इसार्इयों मे भी गोरे-काले का भेद हैं। गोरों का गिरजाधर अलग और कालों का गिरजाघर अलग होता हैं। गोरो के गिरजाघर में काले उपासना के लिए प्रवेश नही कर सकते। दक्षिणी अफ्रीका में इस युग में भी गोरे र्इसार्इ काले र्इसार्इयों पर अत्याचार कर रहे हैं, जबकि चारो ओर समाजवाद का नारा व्याप्त हैं और राष्ट्रसंघ  का नियंत्रण है। इस भेद-भाव को इस्लाम ने ऐसा जड़ से मिटाया कि इसी दक्षिणी अफ्रीका में ही एक जुलू के मुसलमान होते ही उसे मुस्लिम समाज मे समानता प्राप्त हो जाती हैं, जबकि र्इसार्इ होने पर र्इसार्इ समाज मे उसकों यह पद प्राप्त नही होता। गांधी जी ने इस्लाम की इस प्रेरक शक्ति के प्रति हार्दिक उदगार व्यक्त किया हैं।’’