जीव हत्या और पशु-बलि इस्लाम की नजर में
Author Name: मुहम्मद जैनुल-आबिदीन मंसूरी

जीव-हत्या और इस्लाम
                सृष्टि और स्रष्टा में संबंध  सामान्य नियम हैं कि किसी समग्र (Totality) में से उसके किसी ‘अंश’ (Part) को अलग करके उसे ठीक से और पूरी तरह समझा नही जा सकता। ज्ञान-विज्ञान की सारी प्रणाली इसी सिद्धान्त की धुरी पर घूमती हैं। इस्लाम, इस्लामी शरीअत (विधान) तथा इस्लामी शिक्षाओं, नियमों, आदेशो व धार्मिक रीतियों की वास्तविकता और यथार्थता को समझने पर भी यही सिद्धान्त लागू होता हैं। पशुओं के साथ मनुष्य का व्यवहार कैसा हो और इस व्यवहार की उचित सीमा क्या हो? यह जानने के लिए सृष्टि, मनुष्य तथा पृथ्वी पर विद्यमान प्राणियों एवं इन सबके स्रष्टा मे परस्पर क्या और कैसा संबंध हैं, इसपर विचार करना आवश्यक हैं। इसके बिना उपरोक्त प्रश्न का उत्तर नही मिल सकता। अत: आवश्यक हैं कि पहले इसे समझने का प्रयास किया जाए।

इस्लाम की मूलधारणा है कि समस्त सृष्टि का रचयिता व स्रष्टा ‘र्इश्वर’ हैं.......एक, अकेला र्इश्वर। वह निराकार, सर्वविद्यमान, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ एवं अपार तत्वदश्र्ाी हैं। वह पूरी सृष्टि का पालक-पोषक, संयोजक-प्रबंधक एवं स्वामी ‘(Lord) हैं। मनुष्य इसी सृष्टि का अंश है और ब्रहम्माण्ड मे मौजूद हर वस्तु की तरह यह पृथ्वी, एवं इसके उपर या इसके भीतर विद्यमान सारे पदार्थ, जीवधारी व अजीवधारी, चल व अचल वस्तुए भी उसी स्रष्टा द्वारा सृजित हैं। इस्लाम के अनुसार अल्लाह ‘(र्इश्वर) की अपार व असीम तत्वदर्शिता ‘(Absolute Wisdom) एवं उपरोक्त अन्य गुणों ‘(Attributes) की अपेक्षा यह है कि समस्त मानवजाति का पूर्ण मार्गदर्शन र्इश्वर ही करे, अर्थात मार्गदर्शन का यह कार्य स्वयं मनुष्य पर न छोड़ दे।

इस्लाम, मनुष्य को सृष्टि की एक पूर्ण इकार्इ मानता हैं जो आध्यात्मिक, नैतिक, शरीरिक व भौतिक सभी पहलुओ को समाहित किए हुए है। अत: इस्लाम की दृष्टि मे मनुष्य की समस्त वैयक्तिक व सामाजिक जीवन-प्रणाली र्इश्वरीय मार्गदर्शन के अंतर्गत होनी चाहिए। इस जीवन-प्रणाली में आस्था व धारणा, उपासना व पूजा, दाम्पत्य, पारिवारिक व सामूहिक संबंध, पारस्परिक अधिकार व कर्तव्य, आचरण, व्यवहार तथा खान-पान एवं जीवनयापन शैली में उचित व अनुचित, वैध व अवैध, वांछनीय और आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था आदि से लेकर, मनुष्य के सृजन के र्इश्वरीय उद्देश्य पर अमल एवं अन्य सारी सृष्टि के साथ मनुष्य के संबंध की रूपरेखा तक.......हर चीज आती हैं। इस्लाम की धारणा हैं कि यह संसार मनुष्य के लिए बनाया-सजाया गया हैं और स्वयं मनुष्य को र्इश्वर ‘(के आज्ञापालन, उपासना एवं उसके प्रति समर्पित रहने) के लिए। इस संसार के सारे प्राणी व जीवधारी तथा सभी चल या अचल चीजे मनुष्य की सेवा व उपयोग के लिए बनार्इ गर्इ हैं और वे सब, प्रत्यक्ष ‘(Direct) या अप्रत्यक्ष ‘(Indirect), चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने मनुष्य की सेवा कर रही हैं। प्रत्यक्ष रूप से अनेक वनस्पतियॉ, वृक्ष, अनाज, फल, तरकारियॉ आदि, अनेक पशु-पक्षी व समुद्री जीव ‘(मछलियां) आदि मनुष्यों के आहार, सवारी, बोझ ढोने, औषधि व स्वास्थ्य-सामग्री एवं सामान्य उपयोग के लिए सृजित किए गए हैं। अप्रत्यक्ष रूपसे असंख्य कीट-कीटाणु, जल-प्राणी, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी इस संसार, वायुमण्डल एवं पृथ्वी के गर्भ मे उसी प्रकार मानवजाति की सेवा मे तल्लीन हैं जिस प्रकार सूर्य, चन्द्रमा व तारागण का प्रकाश, उष्मा व उर्जा, हवाएॅ, बादल, वायुमंडल एवं पूरा सौर-मंडल’(Solar system)।



प्रत्येक जीवधारी मनुष्य के उपभोग के लिए हैं

                        उपरोक्त विवरण के बाद जीव-हत्या के संबंध में इस्लामी दृष्टिकोण को सरलतापूर्वक समझा जा सकता हैं। हर जीवधारी ‘(वनस्पति या पशु-पक्षी आदि) को मनुष्य के उपभोग के लिए पैदा किया गया हैं। पेड़-पौधों, फलों, तरकारियों आदि को काटना ‘(और खाना एवं उपभोग में लाना) भी उसी प्रकार ‘जीव-हत्या’ हैं जिस प्रकार मछलियों, पक्षियों एवं पशुओं को खाने के लिए उनकी हत्या करना। आभिष और निराभिष दोनो प्रकार की खाद्य-सामग्री के उपभोग को सभी धर्मो एवं धार्मिक समाजों व समुदायों में मान्यता प्राप्त रही हैं। इस्लाम भी इसे मान्यता देता हैं। व्यर्थ पशु-वध-अर्थात किसी पशु को यू ही मारकर छोड़ देना, शिकार या मनोरंजन का शौक पूरा करने के लिए किसी जीवधारी को मारकर फेंक देना-इस्लाम में वर्जित हैं। लेकिन सार्थक उद्देश्यों के लिए, इस्लाम न केवल जीवधारियों ‘(वनस्पतियों व पशु-पक्षियों आदि) के आहार व उपयोग हेतु मनुष्य को अनुमति देता हैं बल्कि कहता हैं कि इन्ही  दो उद्देश्यो  की पूर्ति हेतु इन्हे पैदा किया गया हैं। इस प्रकार देखा जाए तो इस्लाम का दृष्टिकोण कोर्इ अनोखा, अकेला, अभूतपूर्व, अमान्य, अस्वाभाविक व अप्राकृतिक दृष्टिकोण नही हैं बल्कि कुछ नगण्य अपवादों को छोड़कर अतीत से वर्तमान तक के मानव-इतिहास मे मनुष्यों, समाजो, जो इस्लाम का दृष्टिकोण एवं इस्लाम के अनुयायियों का व्यावहारिक आचरण हैं।