हज़रत मुहम्मद (सल्लo) के अंतिम ईशदूत होने के प्रमाण
Author Name: सैयद अबुल आला मौदूदी (रह0)

हज़रत मुहम्मद (सल्लo) के अंतिम ईशदूत होने के प्रमाण

पैग़म्बरी की सत्यता को समझने और उसपर विचार करने से आपको स्वयं मालूम हो जाएगा कि पैग़म्बर प्रतिदिन पैदा नहीं होते, न यह आवश्यक है कि प्रत्येक जाति के लिए हर समय एक पैग़म्बर हो। पैग़म्बर का जीवन वास्तव में उसकी शिक्षा और मार्गदर्शन  का जीवन है। जब तक उसकी शिक्षा और मार्गदर्शन जीवित है उस समय तक मानों वह स्वयं ज़िन्दा है। पिछले पैग़म्बर इस हैसियत से जीवित नहीं, क्यूंकि जो शिक्षा उन्होंने दी थी दुनिया ने उसको बदल डाला। जो ग्रन्थ वे लाए थे उनमें से एक भी आज अपने वास्तविक रूप में मौजूद नहीं। स्वयं उसके माननेवाले भी यह दावा नहीं कर सकते कि हमारे पैग़म्बरों के दिए हुए मूल ग्रंथ मौजूद हैं। उन्होंने अपने पैग़म्बरों के जीवन-चरित्र को भी भुला दिया। पिछले पैग़म्बरों में से एक की भी सही और प्रमाणित जीवन-गाथा आज कहीं नहीं मिलती। यह भी विश्वासपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि वे किस युग में पैदा हुए? क्या काम उन्होंने किए? किस प्रकार जीवन बिताया? किन बातों की शिक्षा दी? और किन बातों से रोका? यही उनकी मौत है। इस हैसियत से वे जीवित नहीं, परन्तु मुहम्मद (सल्ल0) जीवित हैं, क्यूंकि उनकी शिक्षा और मार्गदर्शन जीवित है। जो क़ुरआन उन्होंने दिया था वह अपने मूल शब्दों में मौजूद है। उसमें एक अक्षर, एक बिन्दु, एक मात्रा का भी अन्तर नहीं हुआ। उनकी जीवनचर्या, उनके वचन, उनके कार्य सब-के सब सुरक्षित हैं और तेरह सौ वर्ष से अधिक समय बीत जाने के पश्चात भी इतिहास में उनका चित्र ऐसा स्पष्ट दिखाई देता है कि मानों हम स्वयं आपको देख रहे हैं। संसार के किसी व्यक्ति का जीवन भी उतना सुरक्षित नहीं जितना पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) का जीवन सुरक्षित है। हम अपने जीवन के हर मामले में हर समय आप (सल्ल0) के जीवन से शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। यही इस बात का प्रमाण है कि आप (सल्ल0) के पश्चात् किसी दूसरे पैग़म्बर की आवश्यकता नहीं।

एक पैग़म्बर के पश्चात  दूसरा पैग़म्बर आने के तीन कारण हो सकते हैं:

1- या तो पहले पैग़म्बर की शिक्षा और मार्गदर्शन मिट गया हो और उसे फिर प्रस्तुत करने की ज़रूरत हो।

2- या पहले पैग़म्बर की शिक्षा पूरी न हो और उसमें संशोधन या कुछ बढ़ाने की आवश्यकता हो।

3- या पहले पैग़म्बर की शिक्षा एक विशेष जाति तक सीमित हो और दूसरी जाति या जातियों के लिए दूसरे पैग़म्बर की आवश्यकता हो।

ये तीनों कारण अब शेष नहीं रहे।

1- हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की शिक्षा और मार्गदर्शन जीवित है और वे साधन पूर्णतया सुरक्षित हैं जिनसे हर समय यह मालूम किया जा सकता है कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) का दीन (धर्म) क्या था? कौन-सा मार्गदर्शन और आदेश लेकर आप आए थे? जीवन के किस तरीक़े को आपने प्रचलित किया? और किन तरीकों को आपने मिटाने और बन्द करने की कोशिश की? अत: जब आप (सल्ल0)  की शिक्षा और मार्गदर्शन मिटा ही नहीं, तो उसको नए सिरे से पेश करने के लिए किसी नबी के आने की आवश्यकता नहीं।

2- हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के द्वारा संसार को इस्लाम की पूर्ण शिक्षा दी जा चुकी है। अब न इसमें कुछ घटाने की आवश्यकता है और न कोई ऐसी कमी बाक़ी रह गई है जिसको पूरा करने के लिए किसी नबी के आने की ज़रूरत हो। अत: दूसरा कारण भी दूर हो गया।

3- हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) किसी विशेष जाति के लिए नहीं बल्कि समूचे संसार के लिए नबी (पैग़म्बर) बनाकर भेजे गए हैं और सारे मनुष्यों के लिए आप (सल्ल0) की शिक्षा पर्याप्त है। अत: अब किसी विशेष जाति के लिए अलग किसी नबी के आने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार तीसरा कारण भी दूर हो गया।

इसीलिए हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) को ‘‘ख़ातमुन्नबीयीन’’ (नबियों के समापक) कहा गया है, अर्थात नुबूवत के सिलसिले को समाप्त कर देनेवाला। अब संसार को किसी दूसरे नबी की ज़रूरत नहीं है, बल्कि केवल ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के तरीक़े पर स्वयं चलें और दूसरों को चलाएं। आपकी शिक्षाओं को समझें और उन्हें व्यवहार में लाएं और संसार में उस क़ानून और सिद्धांत का राज्य स्थापित करें जिसे लेकर आप आए थे।