इस्लाम: जिससे मुझे प्यार है
Author Name: अब्दुल्लाह अडीयार

इस्लाम: जिससे मुझे प्यार है

धार्मिक गुरूओं पर आम लोग आसानी से विश्वास नहीं करते। बहुत सारे गुरू आश्चर्यजनक और अस्वाभाविक चीज़ों का प्रदर्शन करते हैं और उनके चमत्कारों को देखकर आम इन्सानों की चमत्कारप्रिय अभिरूचि उन पर विश्वास करने लगती है।

ईश्वर पर ईमान भी बहुत से धर्मों में इसी चमत्कारप्रियता पर निर्भर करता है हक़ीक़त यह है कि जब तक इंसान इस बात को न माने कि नेक मनुष्य को शाश्वत जीवन और बुरे मनुष्यों को शाश्वत असफ़लता मिलकर रहेगी, तब तक सम्भव नहीं कि मनुष्य नेकी और पाकीज़गी की ज़िन्दगी अपनाने के लिए दृढ़ता और मज़बूती के साथ आगे बढ़ सके।

इस उददेश्य को प्राप्त करने के लिए और इन बातों को मन और मस्तिष्क में बिठाने के लिए हमें पुराणों में, वेदों में, प्राचीन नियमों की पुस्तक और नवीन नियमों की पुस्तक में, धर्म की ओर बुलाने वाले भांति-भांति से अलौकिक तरीक़े अपनाते हुए दिखाई देते हैं।

ऐसे चमत्कारों से हटकर पवित्र और गहरा जीवन अगर किसी का नज़र आता है तो वह प्यारे नबी (सल्ल.) का जीवन है।

इतना ही नहीं, बल्कि जब चमत्कारों को मुतालबा आप (सल्ल.) से किया गया तो इसके जवाब में आप (सल्ल.) ने क़ुरआन मजीद को पेश कर दिया।

मूर्तिमान चमत्कारों से मुक्त होकर, ज्ञान और विवेक की ओर बुलाने वाला क्रांतिकारी व्यक्तित्व प्यारे नबी (सल्ल.) का है।

एक और पहलू से प्यारे नबी (सल्ल.) के जीवन को देखिए।

आप (सल्ल.) धार्मिक गुरू हैं और साथ ही जिहाद का नेतृत्व भी आप (सल्ल.) ने किया है।उपदेश करने वाले उपदेशक भी हैं और कुशल शासक और रहनुमा भी इन सभी हैसियतों का आप (सल्ल.) के व्यक्तित्व में बड़ा सुन्दर समन्वय पाया जाता है।

बद्र का युद्ध क्षेत्र हो या बनी-क़ैनक़ा का घेराव हो, उहद का युद्ध हो, तबूक की मुहिम हो या खैबर का संघर्ष, हर जगह और हर रण-क्षेत्र में आप (सल्ल.) एक समझदार और बहादुर जनरल के रूप में सामने आते हैं।

धार्मिक गुरू और साथ ही फ़ौज के अध्यक्ष! यह दोनों खूबियां एक साथ अगर पाई जाती हैं तो अकेले आप (सल्ल.) ही की ज़िन्दगी में

जिहाद और सैन्य कला में आप (सल्ल.) माहिर नज़र आते हैं आप (सल्ल.) ने ईमान और अक़ीदे के बल पर जो साहस अपने साथियों में पैदा किया, वह इतिहास का एक शानदार कारनामा है।

आप (सल्ल.) ने लड़ाई न तो देशों को विजय करने की लालसा में की और न दुश्मनों को नीचा दिखाने की भावना से। केवल हक़ की सरबुलंदी आप (सल्ल.) के सामने थी और इसलिए इसको जिहाद कहा गया और इस जिहाद में अपने प्राणों की बाज़ी लगाने वाले बहादुरों का नाम शहीद रखा गया। शहीद के मायने होते हैं, अपनी जान क़ुरबान करके हक़ की गवाही देने वाला।

लड़ाई के मैदान में घबराकर और तीरों की बौछार से डरकर भाग निकलने वाला जहन्नमी है।

यह थी प्यारे नबी (सल्ल.) की महान शिक्षा जिहाद के बारे में। इसका परिणाम यह हुआ कि आप (सल्ल.) के साथी निर्भय होकर पूरे साहस के साथ सत्य के संदेश को लेकर स्पेन से चीन तक फ़ैल गए।

प्यारे नबी (सल्ल.) के बताए हुए तरीक़े से जब मुसलमान दूर हुए तो उसी समय से उनका पतन शुरू हो गया। इससे पहले उन्होंने कभी पराजय का मुंह नहीं देखा था।

आप (सल्ल.) के ज़माने में रोम की हुकूमत एक विशाल शक्ति समझी जाती थी, लेकिन प्यारे नबी (सल्ल.) की बहादुरी और दृढ़ विश्वास के सामने रोम की यह शक्ति ठहर न सकी। जी हाँ, यह वही मुहम्मद (सल्ल.) हैं जो मरूस्थल में पैदा होकर पलने-बढ़ने वाले एक निर्धन व्यक्ति थे और फिर मानवता के लिए महान नेता साबित हुए।

सैनिक सामग्री में आप (सल्ल.) को चमड़े की लगाम तक उपलब्ध न थी। मजबूरन कपड़ों से बनी हुई लगामें सैनिक घोड़ों को लगाई जा रही थीं।

एक तरफ सैनिक सामग्री का यह अभाव! दूसरी तरफ विशाल रोमन इम्पायर, हर प्रकार की सैनिक साज-सज्जा से माला माल! क्या मुक़ाबला था दोनों का?

लेकिन अपने सिद्धान्तों पर विश्वास रखने वाले नबी और उनके अनुयायियों ने अल्लाह पर भरोसा करके मुक़ाबला किया और सफ़ल हुए। एक तरफ आप (सल्ल.) दुनिया को त्याग देने वाले सन्यासियों से भी ज़्यादा नि:स्वार्थ और सरल स्वभाव थे, दूसरी तरफ अरब और उसके आसपास के कामियाब शासक। इसके बावजूद आप (सल्ल.) की ज़िन्दगी बड़ी सादा थी। आप मामूली मकान में रहते थे। आप (सल्ल.) का जीवन स्तर वह न था जो रईसों और अमीरों की ज़िन्दगी का हुआ करता है। आप (सल्ल.) का भोजन अत्यन्त साधारण होता था। यहाँ तक कि आप (सल्ल.) को फ़ाक़े तक की नौबत आ जाती थी, जिसे याद करके हमारी आँखें सजल हो जाती हैं।

ये सारी खूबिया वास्तव में देन हैं इस्लाम की, जिसके आप (सल्ल.) सच्चे प्रतिनिधि और अलमबरदार थे।

इसीलिए इस्लाम से मुझे प्यार है।